श्रीविद्या की उपासना के प्रथम भेद “श्रीविद्या पूर्णदीक्षा” में दीक्षित हुआ साधक श्रीविद्या दीक्षा लेकर गुरुआज्ञा से नियमानुसार साधना करता है, यह साधना मुख्यतः एक ही चरण में संपन्न होती है तथा साधना का प्रथम चरण विधिवत संपन्न होने के बाद प्रथम चरण की उपास्य शक्ति साधक को “धर्म” में स्थित कर स्वयं ही अग्रिम चरण “अर्थ व अग्रिम चरण की उपास्य शक्ति” की साधना की ओर अग्रसारित करती हैं ओर इसी प्रकार शेष अन्य दो चरणों के लिए भी साधक को उपास्य शक्तियों द्वारा ही अग्रसारित किया जाता है !
श्रीविद्या की उपासना के तीन भेद हैं, प्रथम भेद को “श्रीविद्या पूर्णदीक्षा” कहा जाता है, दुसरे भेद को “श्रीविद्या क्रमदीक्षा” कहा जाता है व तीसरे भेद को “महाविद्या दीक्षा या भोग साधना” कहा जाता है !
– श्री गुरु चरण दास
- श्रीविद्या साधना का यह प्रथम चरण विधिवत संपन्न कराने के लिए गुरु अपने शिष्य को नियमित, संयमित रखकर अथवा श्रीविद्या की अन्य सहायक साधनायें संपन्न कराकर प्रथम चरण संपन्न कराता है ! प्रथम चरण विधिवत संपन्न होने के बाद केवल श्रीविद्या की कुल व क्रमानुसार उपास्य शक्ति भगवती पराम्बा साधक को स्वयं ही अर्थ, काम व मोक्ष की ओर अग्रसारित करती हैं ! प्रथम चरण विधिवत संपन्न हो जाने के बाद गुरु या साधक अपनी इच्छा से स्वयं कोई अग्रसारण या निर्णय नहीं ले सकते हैं ! इसका साधक धर्म, अर्थ व काम से संपन्न हो समस्त भौतिक सुखों को भोगकर अंत में मोक्ष को प्राप्त करता है !