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Vidyarnava Tantra With Hindi Commentary Purvardha Part 1 Kapildev Narayan Chowkambha Sanskrit Series

11.00

विद्यार्णव तंत्र एक महत्वपूर्ण तांत्रिक ग्रंथ है, जो तंत्र साधना, पूजा विधि, ध्यान, मंत्रों और आध्यात्मिक उन्नति के लिए मार्गदर्शन प्रदान करता है। यह तंत्र ग्रंथ विशेष रूप से तांत्रिक परंपरा में पूजा विधियों और मंत्रों के प्रयोग पर केंद्रित है। विद्यार्णव तंत्र का उद्देश्य साधक को दिव्य शक्तियों के साथ संपर्क स्थापित करने और आत्मज्ञान की प्राप्ति के लिए साधन प्रदान करना है।

 

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विद्यार्णव तंत्र: पूर्वार्ध (भाग 1) का विवरण

विद्यार्णव तंत्र श्रीविद्या उपासना से संबंधित एक प्रसिद्ध ग्रंथ है। इसका पहला भाग (पूर्वार्ध) उपासना की प्रारंभिक विधियों, दार्शनिक आधार, और साधना के विविध पहलुओं पर केंद्रित है। यह तंत्र साहित्य में विशेष स्थान रखता है क्योंकि इसमें साधना की गूढ़ प्रक्रियाओं और सिद्धांतों को विस्तार से समझाया गया है। यहाँ इस ग्रंथ के मुख्य बिंदुओं का विवरण दिया गया है:

  1. श्रीविद्या की परिभाषा और महत्त्व
  • श्रीविद्या उपासना देवी त्रिपुरसुंदरी की आराधना पर आधारित है।
  • इसमें संसार को माया नहीं, बल्कि चैतन्यस्वरूप मानकर देवी के साथ एकत्व की भावना को महत्व दिया गया है।
  • साधना का उद्देश्य सांसारिक और आध्यात्मिक दोनों प्रकार के फलों की प्राप्ति है।
  1. तांत्रिक और दार्शनिक दृष्टिकोण
  • तंत्र और वेद का समन्वय करते हुए यह ग्रंथ साधक को आध्यात्मिक ऊंचाइयों पर ले जाने का मार्ग दिखाता है।
  • श्रीचक्र की संरचना और उसमें निहित ब्रह्मांडीय शक्तियों का वर्णन किया गया है।
  • कादी और हादी मतों का विस्तार से वर्णन।
    • कादी मत: देवी को मातृस्वरूप में देखते हुए साधना।
    • हादी मत: त्रिपुरसुंदरी के सौंदर्य और सौम्यता पर केंद्रित साधना।
  1. मंत्र और साधना प्रक्रिया
  • श्रीविद्या साधना में प्रमुख रूप से पंचदशी मंत्र और षोडशी मंत्र का उपयोग।
  • मंत्र जप की विधियाँ और उसका उद्देश्य।
  • आचार्य द्वारा गुरु-दीक्षा का महत्त्व।
  • श्रीचक्र पूजन का विस्तृत विवरण।
  1. साधक के गुण और तैयारी
  • साधक को निर्मल चित्त, संयमित आहार, और सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाने की सलाह दी गई है।
  • गुरु-शिष्य परंपरा का पालन अनिवार्य है।
  1. शक्ति और शिव का समन्वय
  • शक्ति और शिव का अभिन्न संबंध।
  • साधना में शिवतत्त्व और शक्तितत्त्व की समग्रता।
  • त्रिपुरा तत्त्व का विवेचन।
  1. ध्यान और योग के माध्यम से साधना
  • ध्यान की विभिन्न विधियाँ।
  • चक्र जागरण और कुंडलिनी शक्ति का वर्णन।
  • साधक को ध्यान के माध्यम से चैतन्य और आनंद प्राप्ति का मार्ग बताया गया है।
  1. सांसारिक और आध्यात्मिक लाभ
  • श्रीविद्या साधना से धन, आरोग्य, सुख-समृद्धि, और मोक्ष की प्राप्ति।
  • यह साधना साधक को आत्मज्ञान और ब्रह्मानंद का अनुभव कराती है।
  1. ग्रंथ की विशेषता
  • संस्कृत मूल पाठ के साथ हिंदी में सरल व्याख्या।
  • कर्मकांड, उपासना, और ध्यान प्रक्रियाओं का क्रमबद्ध वर्णन।
  • साधकों के लिए यह ग्रंथ व्यावहारिक और दार्शनिक दोनों रूपों में उपयोगी है।

निष्कर्ष

विद्यार्णव तंत्र (पूर्वार्ध) श्रीविद्या उपासना का एक अनमोल ग्रंथ है, जो साधक को साधना के मूल सिद्धांतों से लेकर उसकी गूढ़ प्रक्रियाओं तक हर पहलू में मार्गदर्शन प्रदान करता है। यह ग्रंथ न केवल आध्यात्मिक उन्नति के लिए उपयोगी है, बल्कि जीवन को संतुलित और समृद्ध बनाने के लिए भी सहायक है।

 

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