श्री अनघा दत्त और अनघा लक्ष्मी: पापमुक्ति और समृद्धि की देवी

श्री अनघा दत्त भगवान दत्तात्रेय की शक्ति का स्वरूप हैं, जिन्हें पापों को नष्ट करने वाली और भक्तों को समृद्धि प्रदान करने वाली देवी के रूप में पूजा जाता है। उनका नाम “अनघा” का अर्थ है “निर्दोष” या “पापरहित,” जो यह दर्शाता है कि उनकी उपासना से व्यक्ति के सभी पापों का नाश होता है। अनघा लक्ष्मी देवी महालक्ष्मी का ही एक स्वरूप हैं, जो धन, ऐश्वर्य, सुख-शांति और पुण्य का प्रतीक हैं। अनघा लक्ष्मी को भगवान दत्तात्रेय के साथ पूजने का विशेष महत्त्व है। यह उपासना व्यक्ति को सांसारिक और आध्यात्मिक दोनों प्रकार की समृद्धि प्रदान करती है।

अनघा दत्त व्रत भगवान दत्तात्रेय और उनकी पत्नी अनघा देवी की उपासना का एक पवित्र व्रत है। यह व्रत पापों से मुक्ति, शुभता और जीवन में सुख-समृद्धि प्राप्ति के लिए किया जाता है। भगवान दत्तात्रेय को त्रिमूर्ति (ब्रह्मा, विष्णु और महेश) का स्वरूप माना जाता है, और उनकी शक्ति अनघा देवी को संसार की पवित्रता और निर्दोषता का प्रतीक माना जाता है।

– श्री गुरुचरण दास 

श्री अनघा दत्त और अनघा लक्ष्मी की उपासना भक्त को सांसारिक बंधनों से मुक्त करके जीवन में शांति, सुख और समृद्धि प्रदान करती है। यह पूजा साधक को अपने कर्मों को शुद्ध करने और ईश्वर की कृपा पाने का सर्वोत्तम माध्यम है।

“अनघा देवी की कृपा से हर भक्त को जीवन में पवित्रता, शांति और मोक्ष प्राप्ति का आशीर्वाद मिलता है।”

कौन हैं अनघा दत्त और अनघा लक्ष्मी?

  1. श्री अनघा दत्त:
    अनघा दत्त भगवान दत्तात्रेय की शक्ति का स्वरूप हैं। “अनघ” का अर्थ है – पाप रहित, जो यह दर्शाता है कि उनकी उपासना से भक्त के सभी ज्ञात-अज्ञात पाप नष्ट हो जाते हैं।
  2. श्री अनघा लक्ष्मी:
    अनघा लक्ष्मी देवी महालक्ष्मी का दिव्य स्वरूप हैं, जो धन, ऐश्वर्य, सुख, सौभाग्य और आध्यात्मिक उन्नति का वरदान देती हैं। भगवान दत्तात्रेय के साथ इनकी पूजा विशेष रूप से लाभकारी है।
अनघा दत्त और अनघा लक्ष्मी की विशेषताएँ
  1. पापनाशिनी:
    इनकी उपासना से जीवन के सभी पापों का नाश होता है।
  2. धन और ऐश्वर्य की देवी:
    भक्तों को धन, सुख और अष्टैश्वर्य (धन, स्वास्थ्य, ज्ञान, पराक्रम, कीर्ति, सौंदर्य, संतोष और आध्यात्मिक उन्नति) प्राप्त होते हैं।
  3. गृह कलह से मुक्ति:
    इनके पूजन से परिवार में सुख-शांति और सौहार्द्र बढ़ता है।
  4. संतान सुख और सौभाग्य:
    संतानहीन दंपत्तियों को संतान सुख का वरदान मिलता है।
  5. रोगों से मुक्ति:
    सभी प्रकार के शारीरिक और मानसिक रोग समाप्त हो जाते हैं।
  6. सर्वत्र यश और मोक्ष का मार्ग:
    भक्त को निर्मल यश और अंततः मोक्ष की प्राप्ति होती है।

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